यह महीना मुसलमानो के लिये सबसे पाकीज़ा महिना समझा जाता है। इस महीने में हर एक मुसलमान पर रोज़ा फ़र्ज़ होता है। रमज़ान में लोगो को ज़कात और फ़ित्र भी अदा करना होता हैं। शाबान महीने के ख़त्म होने के बाद माहे रमज़ान का आगाज़ होता है इस मुक़द्दस महीने में मुसलमान भाई बहन हर दिन रोज़ा रखते है यानी सुबह सहर से सूरज डूबने तक कुछ नहीं खाते। सूर्य अस्त पर रोज़ा इफ्तार किया जाता है। इफ्तार के लिए खजूर का सेवन किया जाता हैं। इस पुरे महीने में एक ख़ास नमाज़ होती है जिसे तरावी की नमाज़ कहा जाता है। इस नमाज़ में पूरा कुरान माजिद पढ़ा जाता हैं। यह नमाज़ रात को पढ़ी जाती हैं।
रमजान ही वह महीना हैं जिसमे कुरान नजील हुआ था। इस महीने में इबादत को भी बहुत महत्व हैं। रमजान में हर इबादत का 70 गुना सवाब मिलता हैं। हर एक मुसलमान सालभर इस मुक़द्दस महीने का इंतज़ार करता हैं, जहां वह अपने अल्लाह से अपनी सब बात मनवा लेता हैं।
क्यों मनाया जाता हैं ईद-उल-फ़ित्र का त्यौहार
रमजान का पवित्र महीने ख़त्म होगया और आज यानी 1 शौव्वल को ईद मनाई जारही हैं. ईद–उल–फ़ित्र में ‘फ़ित्र’ अरबी का शब्द है जिसका मतलब होता है फितरा अदा करना. इसे ईद की नमाज़ पढने से पहले अदा करना होता हैं . फितरा हर मुसलमान पर वाजिब है और अगर इसे अदा नहीं किया गया तो ईद नहीं मनाया जासकता.
रोजा इस्लाम के अहम् फराइजो में से एक है और यह सब्र सिखाता है. रमज़ान में पूरे महीने भर के रोज़े रखने के बाद ईद मनाई जाती हैं. दरसल ईद एक तौफा है जो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त अपने बन्दों को महिना भर के रोज़े रखने के बाद देते है. कहा जाता है के ईद का दिन मुसलमानों के लिये इनाम का दिन होता है. इस दिन को बड़ी ही आसूदगी और आफीयत के साथ गुजारना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अल्लाह की इबादत करनी चाहिए.
ईद–उल–फितर को मीठी ईद भी कहा जाता हैं. सेवइयों और शीरखुरमे की मिठास में लोग अपने दिल में छुपी कड़वाहट को भी भुला देते हैं. ईद का यह त्यौहार ना सिर्फ मुसलमान भाई मनाते हैं बल्कि सभी धर्मो के लोग इस मुक्कदस दिन की ख़ुशी में शरीक होते हैं .